नालंदा विश्वविद्यालय, आधुनिक भारतीय राज्य बिहार में स्थित एक प्राचीन शिक्षा केंद्र है, जिसकी स्थापना 5वीं शताब्दी ई. में गुप्त वंश के कुमारगुप्त प्रथम ने की थी। कुमारगुप्त, एक उल्लेखनीय शासक, ने विश्वविद्यालय को एक बौद्ध मठ और शैक्षणिक संस्थान के रूप में स्थापित किया था। विश्वविद्यालय ने शीघ्र ही प्रसिद्धि प्राप्त कर ली, तथा चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्की, श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया सहित पूरे एशिया से विद्वानों और छात्रों को आकर्षित किया।
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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम द्वारा की गई थी। यह विश्वविद्यालय एक बौद्ध मठ और विद्वतापूर्ण संस्था के रूप में प्रसिद्ध हुआ। इसकी विशाल पुस्तकालय, जिसे धर्मगंज के नाम से जाना जाता था, में विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य और बौद्ध धर्मग्रंथों पर असंख्य पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहित थे।
1193 ईस्वी में तुर्की मुस्लिम जनरल बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर आक्रमण किया और इसके महान पुस्तकालय को आग लगा दी। इस घटना ने भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर को भारी क्षति पहुंचाई। नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में इतनी पांडुलिपियाँ और ग्रंथ थे कि वह महीनों तक जलता रहा। इस विनाशकारी घटना ने भारत में बौद्ध धर्म के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नालंदा विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व और इसकी विद्वत्ता आज भी आधुनिक शैक्षिक और सांस्कृतिक पहल के लिए प्रेरणा स्रोत बनी हुई है।
नालंदा का महान पुस्तकालय
नालंदा विश्वविद्यालय का सबसे उल्लेखनीय पहलू इसका विशाल पुस्तकालय था, जिसे धर्मगंज के नाम से जाना जाता था। इस पुस्तकालय में तीन प्रमुख इमारतें थीं: रत्नसागर (रत्नों का सागर), रत्नादधि (रत्नों का समुद्र), और रत्नरंजक (रत्नों से सज्जित)। इसमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ संग्रहीत थे, जिनमें विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य और बौद्ध धर्मग्रंथ शामिल थे। यह पुस्तकालय प्राचीन भारत की विशाल ज्ञान संपदा का प्रतीक था।
नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश
नालंदा विश्वविद्यालय ने अपने इतिहास में कई बार विनाश का सामना किया। सबसे विनाशकारी घटना 1193 ईस्वी में हुई जब तुर्की मुस्लिम जनरल बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर आक्रमण किया। खिलजी की सेना ने नालंदा के महान पुस्तकालय को आग लगा दी, जिससे अनगिनत अमूल्य पांडुलिपियाँ और ग्रंथ नष्ट हो गए। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, पुस्तकालय महीनों तक जलता रहा क्योंकि इसमें संग्रहीत सामग्री की मात्रा अत्यधिक थी। इस घटना को पर्शियन इतिहासकार मीनाज सिराज ने भी दर्ज किया, जिन्होंने कहा कि जलती हुई किताबों को देखकर बहुत पीड़ा हुई क्योंकि यह केवल किताबों का जलना नहीं था बल्कि हजारों वर्षों के रिकॉर्ड्स का नष्ट होना था।
नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण
821 साल बाद नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से पुनर्जीवित किया गया है। 2006 में, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की बात की, जिसके बाद 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ। अंततः, जून 2024 में नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से उद्घाटन किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 17 साझेदार देशों के राजदूत उपस्थित थे। नया नालंदा विश्वविद्यालय परिसर 455 एकड़ में फैला हुआ है और इसमें आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया है, जैसे कि रेन वाटर हार्वेस्टिंग, सोलर पावर और सोलर पार्क्स।
नालंदा विश्वविद्यालय का शैक्षिक महत्व
नालंदा विश्वविद्यालय अपनी कठोर शैक्षिक पाठ्यक्रम और विभिन्न विषयों में उच्च अध्ययन के लिए प्रसिद्ध था। इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों में उस समय के कुछ प्रमुख विद्वान शामिल थे, जैसे कि प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट और चीनी तीर्थयात्री और विद्वान जुआनजैंग, जिन्होंने नालंदा में कई वर्षों तक अध्ययन और शिक्षण किया। नालंदा का प्रभाव भारत से परे था, जिसने एशिया भर में ज्ञान और संस्कृति के प्रसार में योगदान दिया।
वर्तमान नालंदा विश्वविद्यालय
नया नालंदा विश्वविद्यालय आज के समय के सबसे आधुनिक विश्वविद्यालयों में से एक है। इसमें पुराने नालंदा की तरह ही विज्ञान, गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, साहित्य और बौद्ध धर्म के अध्ययन के साथ-साथ आधुनिक विषयों की भी शिक्षा दी जा रही है। यह विश्वविद्यालय एक बार फिर से वैश्विक शैक्षिक परिदृश्य पर अपनी जगह बना रहा है और भारत की शैक्षिक और सांस्कृतिक धरोहर को पुनर्जीवित कर रहा है।
नालंदा विश्वविद्यालय भारत की समृद्ध बौद्धिक और सांस्कृतिक इतिहास का एक गवाह है, और इसे पुनर्जीवित करने के प्रयास आधुनिक युग में भी जारी है |
नालंदा विश्वविद्यालय का भविष्य
शैक्षणिक उत्कृष्टता को बहाल करना
पुनर्जीवित नालंदा विश्वविद्यालय का लक्ष्य विश्व स्तरीय शिक्षा और शोध के अवसर प्रदान करके अपने पूर्व गौरव को बहाल करना है। अत्याधुनिक सुविधाओं और विविध पाठ्यक्रमों के साथ, विश्वविद्यालय एक बार फिर सीखने का वैश्विक केंद्र बनने के लिए तैयार है।
स्थिरता और नवाचार को अपनाना
नए परिसर को स्थिरता को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है, जिसमें पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों को शामिल किया गया है ताकि इसके पर्यावरणीय पदचिह्न को कम किया जा सके। स्थिरता के प्रति यह प्रतिबद्धता नालंदा के अभिनव और जिम्मेदार शिक्षा के प्रति समर्पण को दर्शाती है।
निष्कर्ष
नालंदा विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार शिक्षा और ज्ञान के प्रति भारत की स्थायी प्रतिबद्धता का प्रमाण है। दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में अपना स्थान पुनः प्राप्त करते हुए, नालंदा लचीलेपन और बौद्धिक विरासत के प्रतीक के रूप में खड़ा है। विश्वविद्यालय का समृद्ध इतिहास और आशाजनक भविष्य इसे आने वाली पीढ़ियों के लिए सीखने का एक प्रकाशस्तंभ बनाता है।